प्रश्न 1- “बाल गंगाधर तिलक राजनीति में क्रान्तिकारी थे परन्तु समाज सुधार के क्षेत्र में अनुदारवादी थे।” व्याख्या करें।
बाल गंगाधर तिलक राजनीतिक क्रांतिकारी के साथ-साथ एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने कभी भी हिन्दू- मुसलमानों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं किया। वह दोनों पक्षों की गलतियों को समझते थे। उन्होंने कभी यह प्रयत्न नहीं किया कि हिन्दू व मुसलमानों में आपस में लड़ाई हो। वह मुसलमानों के प्रति कोई द्वेष की भावना नहीं रखते थे। लखनऊ अधिवेशन में जिसमें उन्होंने कोस तथा मुस्लिम लीग में समझौता कराने का प्रयास किया, इस बात का प्रमाण है कि तिलक साम्प्रदायिकता के विरोधी थे। डॉ. अन्सारी तथा आसफ अली के विचारों में वे मुसलमानों के हितैषी व शुभचिन्तक थे। जाति के प्रति उनका दृष्टिकोण संकुचित न होकर व्यापक था, विस्तृत था।
भारतीय आधुनिक राजदर्शन को तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष संग्राम में लगाया था। उन्होंने जनता की भावनाओं को गहराई से देखा था। उनका कथन था कि जीवनोद्देश्य और सादा जीवन के लिए पश्चिमी सभ्यता का अन्धाधुकरण नहीं करना चाहिए। वे ब्रिटिश नौकरशाही के तो आलोचक थे, किन्तु ब्रिटिश, आदर्श, मूल्य और प्रगतिशीलता के प्रति सम्मान रखते थे। भारत का राजदर्शन भारत के लिए और विश्व दोनों के लिए महत्वाकांक्षा रखता है, क्योंकि इसका आधार भारतीय शाश्वत जीवनदर्शन है। स्वशासन का सारा संघर्ष इस पर दृढ़ था कि भारतीय जीवन का आदर्श ही स्वराज्य को प्राप्त करना है। भारत संस्कृति का दर्शन इस तथ्य पर आधारित है कि यह संसार सत् है, चिटू है, और पूर्ण है। मानव या तो ब्रह्म रचना स्वीकार करे या अराजकता । समस्त जीवन का उद्देश्य हम इसी संसार में प्राप्त कर सकते हैं। सनातन धर्म ही हमारे जीवन का नैतिक प्राण है। स्वधर्म के द्वारा हम राजनीतिक जीवन के प्रति कर्तव्य निर्वाह करते हैं और सामाजिक व्यवस्था में सामंजस्य तथा शान्ति स्थापति करते हैं। राज्य व्यक्ति के नैतिक जीवन में सहायक होता है। इसी प्राचीन आदर्श को लेकर शास्त्रीय राजदर्शन भारत में प्रचलित था। राज्य का अस्तित्व धर्म के लिए था, अतः धर्म की रक्षा करना राज्य-धर्म था। राजनीति सत्ता का केन्द्रीकरण किसी विशिष्ट वर्ग में नहीं निहित था। धर्म का व्रत लेना राज्य का भी कार्य है।
तिलक के राजनीतिक दर्शन और उनकी कार्यप्रणाली के आधार पर ही लोगों द्वारा उन्हें क्रान्तिकारी कहा गया। इस संदर्भ में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत हैं-
(1) तिलक के राजनीतिक दर्शन और उनकी कार्यप्रणाली को लेकर विदेशी आलोचक और भारतीय क्रान्तिकारी विशेषकर महाराष्ट्र के क्रान्तिकारी उन्हें क्रान्तिकारी कहते थे।
(2) शिरोल द्वारा तिलक के क्रान्तिकारी स्वरूप को उजागर करते हुए उनके द्वारा अपनी पुस्तक ” इण्डिया” में कहा गया। ” तिलक पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने हत्याओं को जन्म देने वाले वातावरण को उजागर किया।”
(3) तिलक भारत की स्वतंत्रता के लिए तीव्रतम प्रयास के पक्षधर थे। इसके लिये उनके द्वारा धार्मिक प्रेरणा का सहारा लिया गया।
(4) बैसन द्वारा 1908 में तिलक के विरुद्ध मुकदमे का संकलन करते हुए यह मत अभिव्यक्त किया गया कि तिलक के लेख “विद्रोह की धमकी भी है, और उनके उपदेश का सारांश ‘स्वराज्य अथवा बम’ है।
बाल गंगा तिलक ने समाज सुधार से संबंधित अनेक कार्यों के प्रस्ताव रखें, जैसे-
1. विधवा पुनर्विवाह को मान्यता दी जाए।
2. लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 20 वर्ष और लड़कियों के विवाह की आयु 16 वर्ष हो । 3. विवाह उत्सव पर मद्यपान बन्द कर दिया जाय। 4. दहेज का प्रचलन रोक दिया जाए। 5. जनता में अधिकाधिक शिक्षा का प्रसार किया जाए। 6. शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को सम्मिलित किया जाए। 7. प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी आय का 20 प्रतिशत भाग समाज सुधार के लिए दान करे। 8. समाज में विधवाओं को हेय दृष्टि से न देखा जाए। 9. जो व्यक्ति 40 वर्ष की आयु पार कर चुके हों, उन्हें चाहिए कि वे पुनः विवाह का परित्याग करें। तिलक प्राचीन संस्कृति से प्राप्त मूल्यों को उत्तराधिकार के रूप में सुरक्षित रखना चाहते थे। उन्होंने सहमति बिल का कड़ा विरोध किया, क्योंकि इसके अनुसार लड़कियों के विवाह की उम्र 12 वर्ष निर्धारित की गयी थी। तिलक के शब्दों में, “यदि ब्रिटिश सरकार हमारी सामाजिक व्यवस्था में हस्तक्षेप करती रही तो हमारी भारतीयता का अन्त हो जायेगा।”
इस प्रकार उपरोक्त विवरण के आधार पर स्पष्टतः यह कहा जा सकता है कि बाल गंगाधर तिलक एक क्रांतिकारी राजनीतिज्ञ के साथ ही एक महान समाज सुधारक भी थे।