आहार चिकित्सा का महत्व
प्रत्येक रोग की अवस्था में आहार का आयोजन आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है किन्तु आहार द्वारा रोग की अवस्था में सुधार लाने के लिये विशेष रूप से आयोजित आहार चिकित्सा के कुछ प्रमुख उद्देश्य अग्रलिखित हैं-
(1) आयोजित आहार रोगी का पोषण स्तर उत्तम रखने में सक्षम हो अर्थात् रोगों का उच्च पोषण स्तर बनाये रखे।
(2) रोग की स्थिति में किसी पोषक तत्त्व की कमी हो गई हो तो उसे दूर करें अर्थात् पोषक तत्त्वों की पूर्ति करना।
(3) शरीर को और विशेष रूप से प्रभावित अंगों को आराम दें। रोग में विशेष अंगों का भी ध्यान रखना आवश्यक है। यदि वह अंग पीड़ित है अथवा पूरा शरीर तो विशेष अंगों को अधिक से अधिक आराम मिलना चाहिये अर्थात् उसका कार्य सरल करना आवश्यक है। अतः उपचारात्मक आहार का उद्देश्य आहार द्वारा अंगों के अनुसार आहार प्रदान करना भी है।
(4) शरीर के भार में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करना। जो व्यक्ति अपना भार घटाना चाहते हैं अथवा बढ़ाना चाहते हैं तो ऊर्जा की कम अथवा अधिक मात्रा करके शरीर भार में कमी अथवा वृद्धि की जा सकती है।
(5) रोग की अवस्था में परिवर्तित चयापचय की क्षमतानुसार शरीर में भोज्य तत्त्व की ग्रहण की जाने वाली मात्रा को समायोजित करें, जैसे हृदय रोग, मधुमेह आदि रोगों में भोजन में ऐसा सामंजस्य लाना जिससे शरीर उनका उपयोग कर सके, यह भी उपचारात्मक आहार का उद्देश्य है।
(6) शरीर को शीघ्रता से रोग मुक्त करना, रोग की तीव्रता कम करना तथा स्वास्थ्य स्तर बनाये रखना भी इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य है अतः भोजन में परिवर्तन रोग की अवस्था में करना आवश्यक है। रोग को ध्यान में रखते हुए आहार नियोजन करना चाहिये। आहार द्वारा उपचार करने की प्रक्रिया सरल होने का आभास होता है किन्तु यह व्यावहारिक रूप से रोगी के अत्यधिक सहयोग के बिना संभव नहीं होता है।
आहार में परिवर्तन निम्नलिखित उद्देश्य की पूर्ति हेतु किया जाता है-
(1) रोगावस्था में उपयुक्त पोषण स्तर को बनाये रखना (To Maintain Good Nutrition Status ) –
रोग की अवस्था में कुपोषण अथवा अपर्याप्त पोषण की स्थिति। उत्पन्न हो सकती है यदि उपयुक्त पोषण न दिया जाये। इस स्थिति को रोकने के लिये निम्नलिखित तथ्यों की जानकारी होना भी आवश्यक है-
- रोग का कारण।
- आहार में परिवर्तन।
- रोग की अवधि।
- रोगी की आहार सम्बन्धी आदतें । रोग की अवस्था में आहार
(2) आहार आयोजन (Planning of Diet)-
नियोजन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है-
रोगमें रोगी की पसंद भी परिवर्तित हो जाती है। कुछ भोज्य पदार्थों में वह अरुचि रखता है और उन्हें लेना पसंद भी नहीं करता। रोगी की मनोवैज्ञानिक एवं संवेगात्मक स्थिति में भी परिवर्तन आने के कारण रोगी की स्वीकृति लेना भी महत्वपूर्ण है। प्रायः रोगी शिकायत करते हैं कि भोजन ठीक नहीं बना है अथवा उन्हें भूख नहीं है अतः भोजन रोगी की रूचिनुसार देना चाहिए।
(3) रोगी की पोषण सम्बन्धी शिक्षा-
रोगी रूचिपूर्ण भोजन ग्रहण करे तथा किसी भोजन को लेने में आनाकानी न करे। अतः आहार नियोजन में रोगी को समझाना आवश्यक भी है और रोगी की आवश्यकताओं तथा रूचियों को भी दृष्टिगत रखना चाहिये। डाक्टर, नर्स एवं डायटीशियन प्रायः रोगी के सम्पर्क में रहते हैं। अतः रोगी को दिया जाने वाला उपयुक्त आहार तथा पोषक तत्त्वों की जानकारी रोगी देते रहना चाहिये जिससे उसके महत्त्व एवं लाभ को स्वीकार करके रोगी अपनी नापसंद को भी परिवर्तित कर सकता है। आहार नियोजक को रोगी को पोषण स्तर आहार द्वारा सामान्य बनाये रखना चाहिये। इसके लिये निम्नलिखित आहार का ध्यान रखना आवश्यक है-
(i) भोजन में सुधार रोगी की भोजन सम्बन्धी आदतों के अनुरूप किया जाना चाहिये।
(ii) रोग की अवस्था में भोजन का पाचन एवं शोषण ठीक प्रकार नहीं हो पाता जिससे पोषक तत्त्वों की हानि तथा हीनता जनित रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
(iii) आप्रेशन, बीमारी अथवा संक्रामक रोगों में शरीर में विभिन्न पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है। हड्डियों की टूट-फूट के कारण प्रोटीन का निष्कासन अधिक होता है और संग्रह घटने लगता है जिससे शरीर के भार में कमी आ जाती है। रक्त हीनता उत्पन्न हो जाती है। खनिज तत्त्वों का भी शरीर में निष्कासन होने लगता है अतः इन सब बातों को ध्यान में रखकर आहार नियोजन किया जाना उचित है।
रोग की स्थिति में भोजन में परिवर्तन करना आवश्यक होता है। रोग को ध्यान में रखकर आहार नियोजन करना चाहिये।
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