गाँधी के अहिंसात्मक राज्य के सिद्धान्त

गाँधी के अहिंसात्मक राज्य के सिद्धान्त
गाँधी के अहिंसात्मक राज्य के सिद्धान्त

गाँधी के अहिंसात्मक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए ।

अहिंसात्मक राज्य के सिद्धान्त

 आधुनिक राज्य को गाँधीजी एक आवश्यक बुराई ‘मानकर भी यह कहते हैं कि एक राज्य विहीन आदर्श समाज की स्थापना असम्भव है। इसके लिए वे एक अहिंसात्मक आदर्श राज्य की कल्पना करते हैं जिसे वे रामराज्य की संज्ञा देते हैं। गाँधीजी के अहिंसात्मक राज्य के प्रमुख सिद्धान्त या विशेषतायें निम्न हैं-

(1) विकेन्द्रीकरण- गाँधीजी एक ऐसे अहिंसक राज्य की कल्पना करते हैं जिसमें विकेन्द्रीकरण को मान्यता प्राप्त होगी।

(क) राजनीतिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण- गाँधीजी इस बात के पक्ष में नहीं थे कि आधुनिक समय में लोकतन्त्र के नाम पर सम्पूर्ण राजनीतिक शक्तियाँ कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित होती जा रही हैं जिनका वे मनमाना प्रयोग करते हैं।

(ख) आर्थिक शक्तियों का विकेन्द्रीकरण- गाँधीजी इस बात के पक्ष में नहीं थे कि कुछ इने-गिने व्यक्ति अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए हजारों मजदूरों का शोषण करें। वे धन लोलुप व्यक्तियों से घृणा करते थे, उनका विचार था कि मशीनें और यन्त्र-लोभ के परिणाम हैं और शोषण का माध्यम हैं

(2) ट्रस्टीशिप- गाँधीजी का मत है कि आर्थिक समानता के मूल में पूंजीपतियों का ट्रस्टी पक्ष निहित है। इस सिद्धान्त के अनुसार पूंजीपति को अपने पड़ोसी से अधिक धन या सम्पत्ति रखने का अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि उनके पास धन अधिक है तो क्या वह धन उससे छीन लिया जाए? लेकिन ऐसा करने के लिए हिंसा आवश्यक होगी और हिंसा कभी भी समाज के लिए हितकर न होगी क्योंकि सम्पत्ति जमा करने की शक्ति रखने वाले एक व्यक्ति की शक्ति को समाज खो बैठेगा।

(3) शारीरिक श्रम- गाँधीजी के अहिंसक राज्य की एक प्रमुख विशेषता शारीरिक श्रम अथवा शरीर के योग्य श्रम है। गाँधीजी ने इस सिद्धान्त को टालस्टाय, रस्किन, गीता तथा बाइबिल आदि का उदाहरण देते हुए कहा है कि व्यक्ति को शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए ताकि उसे भरपेट रोटी आदि मिल सके। गाँधीजी ने मानसिक श्रम करने वालों को भी शारीरिक श्रम करने की सलाह दी।

(4) वर्ण व्यवस्था- गाँधीजी प्राचीन भारतीय संस्कृति के पोषक थे इसीलिए उन्होंने प्राचीन भारतीय वर्ण व्यवस्था का खुलकर समर्थन किया और कहा कि सभी व्यक्तियों को अपने वंशानुगत व्यवसाय को प्राथमिकता देनी चाहिए। उनके अनुसार समाज में चार वर्ण, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद होने चाहिए।

(5) अपरिग्रह- गाँधीजी का कहना है कि अहिंसक समाज में कोई व्यक्ति आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति का संचय नहीं करेगा। वे संचय की प्रवृत्ति के विरोधी हैं। उनका मत है कि ” धनवानों के पास संग्रह करने के लिए अत्यधिक सामग्री है। यदि प्रत्येक व्यक्ति केवल आवश्यक वस्तु का ही संग्रह करे तो कोई भी जरूरत मन्द नहीं होगा और सभी लोग संतुष्ट रह सकेंगे।

(6) पुलिस और सेना- गाँधीजी इस तथ्य को स्वीकार करते थे कि सभी व्यक्ति अहिंसावादी नहीं बन सकते हैं। वे कल्पनावादी न होकर यथार्थवादी थे। इसलिए वे अपने आदर्श समाज में एक सीमा तक पुलिस की व्यवस्था को स्वीकार करते थे। लेकिन वे आधुनिक शब्दों में विमान पुलिस अपने कार्य में अहिंसा को प्राथमिकता देगी।

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