गोखले के आर्थिक एवं सामाजिक विचार
गोखले के आर्थिक विचार- गोखले की गणित में बहुत रुचि थी और उन्होंने भारत की आर्थिक स्थिति का गहरा अध्ययन किया था। इसलिए उनके विचार सदा तर्क तथा तथ्यों पर आधारित होते थे। गोखले ने यह अनुभव किया कि भारत एक अत्यन्त निर्धन देश है और उसकी निर्धनता का कारण अंग्रेजी सरकार का प्रशासन तथा सेना पर बहुत अधिक व्यय (खर्च) तथा राष्ट्रीय आय का असमान बँटवारा था। उन्होंने भारत की निर्धनता को दूर करने के लिए राष्ट्रीय आय के समान बँटवारे पर काफी बल दिया। उन्होंने भारत सरकार से बार-बार अपील की कि वह प्रशासन और सेना पर कम खर्च करे तथा आय और व्यय (आमदनी तथा खर्च) में एक सन्तुलन स्थापित करे।
कृषि की उन्नति- गोखले कृषकों की दयनीय दशा से बहुत दुखित हुए। उन्होंने महसूस किया कि कृषि बहुत पिछड़ी दशा में है। जहाँ एक ओर साहूकार उनका शोषण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार उन पर करों का बहुत अधिक भार लाद रही है। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार किसानों को करों में कुछ राहत दे तथा करों की वसूली के ढंगों में कुछ परिवर्तन करे।
औद्योगिक उन्नति- गोखले महसूस करते थे कि यदि भारत केवल कृषि पर ही अपनी निर्भरता रखता रहा और उद्योगों की उपेक्षा करता रहा, तो भारत निर्धन देश रह जायेगा। इसलिए उन्होंने कृषि की उन्नति के साथ-साथ उद्योगों के विकास पर बहुत बल दिया। उन्होंने उद्योगपतियों से अपील की कि ये भारतीय उद्योगों की उन्नति के लिए सभी उपलब्ध हो सकने वाले साधनों का प्रयोग करें, कारखानों में बढ़िया माल तैयार करें तथा उसकी खपत के लिए विदेशों में मण्डियाँ खोलें। उन्होंने उद्योगपतियों को यह सुझाव दिया कि मध्यम वर्ग के शिक्षित लोगों को उद्योगों में अधिक से अधिक लगाया जाए ताकि पढ़े-लिखे लोगों में भी बेरोजगारी दूर हो, उनमें एक नवीन उत्साह का संचार हो तथा एक नई पीढ़ी औद्योगिक विकास की ओर आकर्षित हो।
गोखले ने भारत की खराब आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न तरीकों से सरकार पर निरन्तर दबाव डाला। उन्होंने अपने बजट भाषणों में नमक कर हटाने, सूती माल पर से उत्पादन कर हटाने, रेलों और सेना पर कम खर्च करने के लिए अनेक तर्क दिये। गोखले ने आयकर की सीमा बढ़ाने पर भी विशेष बल दिया। 1907 ई. के बजट भाषण में उन्होंने स्वर्ण मुद्रा के प्रारम्भ का विरोध किया क्योंकि ब्रिटिश सरकार भारतीय मुद्रा को सोने के रूप में ही ग्रहण करती थी, जिससे भारतीय आर्थिक हितों को हानि पहुँचती थी। उन्होंने भारतीय रुपये को ब्रिटिश रुपये में बदलने की बात कही।
सामाजिक विचार- भारतीय समाज की वस्तुस्थिति का चित्रण उन्होंने बहुत हृदयस्पर्शी शब्दों में इस तरह किया है, “मेरे महामहिम, यह एक वेदनामय सत्य है कि प्रत्येक दस में से नौ बालक अँधेरे और अज्ञान में पल रहे हैं तथा प्रत्येक पाँच में से चार गाँव स्कूल के अभाव में पीड़ित हैं। भारतीय नागरिकों से ब्रिटिश साम्राज्य में द्वितीय नागरिक के समान व्यवहार किया जाता है। ब्रिटिश नागरिक तथा उपनिवेश में रहने वाले अन्य लोग उच्च नागरिकता से विभूषित हैं। .सभ्य संसार में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ के नागरिक देश की ‘सुरक्षा के उत्तरदायित्व में भागीदार नहीं बनाये जाते वार्षिक मृत्यु दर, प्लेग और अकाल को छोड़कर गत बीस वर्षों से लगातार बढ़ी जा रही है, जन्म-दर सामान्य रूप से गिर गई है। ……. संसार में ऐसा कोई देश नहीं है जहाँ योग्य, शिक्षित और प्रतिभाशाली नागरिकों को उच्चतर दायित्वों से पृथक रखा जाता है। गोखले ने 30 मार्च, 1904 को अपने बजट भाषण में कहा था, “मेरे महामहिम भारत जैसे निर्धन देश में जहाँ नागरिकों को सदैव कष्टों और आपत्तियों का सामना करना पड़ता है, यह आवश्यक है कि लोगों पर सार्वजनिक भार कम से कम डाला जाये।”
वे एक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाते थे। उन्होंने यथार्थवाद तथा आदर्शवाद में बहुत सुन्दर मेल किया। वे सदैव यह सोचते थे कि तत्कालीन परिस्थितियों में क्या सम्भव है अथवा क्या असम्भव है । उस समय ब्रिटिश सरकार का दमन चक्र इतना तेज था कि उसने क्रान्तिकारियों की कमर तोड़ दी थी और उग्रवादियों को कुचल दिया था। इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से व्यवहार करते समय तर्क और समय का मार्ग अपनाया। उन्होंने अपने देशवासियों के लिए अधिक से अधिक अधिकारों की माँग की और इस हेतु वे कई बार इंग्लैण्ड गये। उन्हें इस बारे में कई बार निराशा का भी सामना करना पड़ा।
IMPORTANT LINK
- भारतीय पुनर्जागरण की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
- भारतीय पुनर्जागरण एवं राष्ट्रवाद की पृष्ठभूमि | Background of Indian Renaissance and Nationalism in Hindi
- राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार | Social thoughts of Raja Rammohan Roy in Hindi
- राजा राममोहन राय के योगदान | Social thoughts of Raja Rammohan Roy in Hindi
- राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना क्यों की गई? इसके उद्देश्य एवं सिद्धान्त
- आधुनिक भारत के जनक राजा राममोहन राय
- स्वामी दयानन्द के राजनीतिक विचार, सामाजिक एवं धार्मिक विचार
Disclaimer: GeneralKnowlage.Com The material and information contained on this website is for general information purposes only. If you have a complaint about something or find your content is being used incorrectly then kindly mail us: generalknowlage1233@gmail.com