जवाहरलाल नेहरू के क्या आर्थिक विचार थे?

जवाहरलाल नेहरू के क्या आर्थिक विचार थे?
जवाहरलाल नेहरू के क्या आर्थिक विचार थे?

जवाहरलाल नेहरू के क्या आर्थिक विचार थे?

पं नेहरू के आर्थिक विचार

उनका कहना था कि राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्व नहीं, यदि जनता को आर्थिक स्वतन्त्रता नहीं मिलती है। उनका विचार सही था, क्योंकि खाली पेट, नंगे शरीर तथा दिन रात के काम से चकनाचूर मानव स्वतंत्रता का क्या अर्थ समझ सकता है। उनका विचार था कि “आज हमारी समस्या जनता के जीवन स्तर को उन्नत करने, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने, सुन्दर एवं स्वस्थ जीवन बिताने के लिये आवश्यक सुविधायें देने, केवल भौतिक वस्तुओं के सम्बन्ध ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी उसे जीवन में प्रगति विकास करने में सहायता देने की है।” सोवियत संघ की क्रांति से पूर्व जर्जर स्थिति थी, परन्तु पंचवर्षीय योजनाओं ने रूस की कायाकल्प कर दी। पं. नेहरू का भी विश्वास था कि पंचवर्षीय योजनाएं हमारे देश का आर्थिक विकास करेंगी। उन्होंने कहा कि “देश आर्थिक वृद्धि के लिए, व्यक्ति और समाज के विकास के लिए, देश की स्वतंत्रता के लिए परम आवश्यक है कि हम एक संगठित योजना तैयार करें और यह योजना हमारे राजनीतिक गणतंत्र के ढाँचे के अधीन बनायी जाये।” उन्होंने आगे कहा कि “योजनाओं का अभिप्राय केवल यह नहीं कि हम कुछ कारखाने स्थापित कर लें या कुछ मामलों में उत्पादन में वृद्धि कर लें। कारखानों की स्थापना और उत्पादन में वृद्धि आवश्यक है, परंतु कुछ अधिक महत्व के साथ हमें प्राप्त करना है, जिससे समाज एक विशेष किस्म के ढाँचे में धीरे-धीरे विकास करे।”

महात्मा गांधी चाहते थे कि देश की आर्थिक उन्नति तभी होगी, जब देश में बेरोजगारी समाप्त होगी और बेरोजगारी समाप्त करने के लिए बड़े कारखानों के स्थान पर कुटीर उद्योग-धन्धों की स्थापना होगी। परन्तु नेहरू का विचार इसके विपरीत था। वे विशाल उद्योगों एवं बड़े-बड़े कारखानों को स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि “बड़े कारखानों के बिना भारत में भौतिक स्तर पर वास्तविक कल्याण अथवा प्रगति नहीं हो सकती। मैं तो यह कहूँगा कि बड़े कारखानों तथा उसके परिणामों के बिना हम एक राष्ट्र के रूप में अपनी स्वतंत्रता भी नहीं रख सकते और मेरा ख्याल है कि व्यापक रूप से फैले ग्राम उद्योगों के बिना भारत में लोककल्याण तथा बड़े पैमाने पर रोजगार की व्यवस्था कम से कम आगे आने वाली काफी लम्बे समय तक नहीं हो सकेगी। प्रश्न अब देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में छोटे उद्योगों का समन्वय करने का है।”

इस प्रकार पं नेहरू देशों की आर्थिक उन्नति से प्रभावित थे। ग्रामीण कृषि सभ्यता के प्रति उन्हें आकर्षण था वे खेती को बड़े पैमाने तथा आधुनिक यंत्रों की सहायता से कराना चाहते थे।

महात्मा गांधी तथा पं. नेहरू के दृष्टिकोण में गहरा अन्तर था। गांधीजी जब किसी विषय पर सोचते थे तब उनका तरीका आदर्शवादी एवं पूर्ण नैतिक होता था। परन्तु पं. नेहरू का तरीका वैज्ञानिक, व्यवहारिक, आधुनिक तथा समयानुकूल होता था। गांधी जी के समान पं. नेहरू “स्वशासी ग्रामों” का शासन नहीं चाहते थे। वह ग्रामीण सभ्यता को पिछड़ापन कहते थे और विश्व की दृष्टि से वे भारत को पिछड़ा देश कहलाने को तैयार न थे। प्रत्येक देश आगे बढ़ रहा है। उत्पादन की वृद्धि हो रही है। पं. नेहरू देश की आर्थिक उन्नति के लिए विशाल पैमाने पर उत्पादन चाहते थे और कल कारखाने से युक्त भारत को विश्व के विकासशील देशों की पंक्ति में ला खड़ा करना चाहते थे। वे भारत को प्रगतिशील देश के रूप में देखना चाहते थे। उनका कहना था कि “यदि भारत को औद्योगिक उन्नति करनी है तो उसे तीन बातों की अत्यन्त आवश्यकता है (1) भारी इंजीनियरिंग एवं मशीन निर्माण उद्योग, (2) वैज्ञानिक अनुसन्धानिक संचाएं तथा (३) विद्युत शक्ति सारी योजनाओं का आधार ये चीजें होनी चाहिए।” पं नेहरू यद्यपि नागरिक सभ्यता के प्रशंसक थे पर ग्रामीण जनसंख्या को नहीं भूलते थे। बड़े पैमाने पर उद्योगों के पक्ष में होते हुए भी वे कुटीर उद्योगों की उपेक्षा नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कुटीर उद्योगों के राष्ट्रीय संरक्षण पर भी पर्याप्त बल दिया। पं नेहरू यद्यपि देश में उद्योगीकरण करना चाहते थे परन्तु कृषि की भी उपेक्षा नहीं करना चाहते थे। उनका विश्वास था कि भारत औद्योगिक प्रगति तभी कर सकता है जब वह कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो। वे कृषि के विकास के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनाने का परामर्श देते थे। पं. नेहरू भारत में समाजवाद लाना चाहते थे। उनका प्रारम्भ से सोवियत समाजवाद की और आकर्षण था। प्रधानमंत्री के पद पर पहुँचकर उन्होंने जिस समाजवाद को भारत में लाना चाहा, वह सोवियत समाजवाद से मिलता जुलता है। वास्तव में उन्होंने जो समाजवाद अपनाना चाहा वह उनके द्वारा ही संशोधित था। मार्क्स के आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वे बहुत प्रभावित हुए थे ।

मार्क्सवाद से प्रभावित होते हुए भी पं. नेहरू मार्क्सवादी न थे। उनका कहना था कि “मार्क्सवाद अन्तिम आदर्श अथवा सिद्धांत नहीं जिसमें परिवर्तन न किया जा सके। यह केवल आर्थिक एवं सामाजिक घटनाओं को समझने हेतु आधारभूत ढाँचा प्रस्तुत करता है, परन्तु इसके नियमों अथवा सिद्धांतो को सर्वत्र बिना विचार उपयोग में नहीं लाया जा सकता है।” पं. नेहरू ने साफ कहा कि भारत के लिए मार्क्सवादी समाजवाद उपयुक्त न होगा, उसके लिए दूसरे प्रकार का समाजवाद चाहिए। वास्तव में नेहरू मैक्स एडलर की भाँति नैतिक समाजवादी थे। 1936 में कॉंग्रेस अध्यक्ष पद से बोलते हुए उन्होंने बताया कि “उनका समाजवाद अस्पष्ट प्रकार का मानवीय समाजवाद नहीं है, वरन् उसके अर्थ में पूर्ण अर्थशास्त्र से सम्बन्धित है। वे देश को आर्थिक दृष्टि से उठाना चाहते थे, पर वैज्ञानिक ढंग से बड़े कारखानों के साथ खादी उद्योग एवं छोटे कुटीर उद्योगों की भी उन्नति चाहते थे। भारत की अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत ‘राष्ट्रीयकरण’ शब्द का भी प्रयोग किया गया है। पं. नेहरू ने कुछ बड़े उद्योगों का सरकारीकरण किया जिन पर पहले पूँजीपतियों का अधिकार था ताकि कच्चे माल, वितरण एवं मूल्यों की समस्या को भलीभाँति सुलझाया जा सके। 1955 में नेहरू जी की प्रेरणा से अवाडी अधिवेशन में समाजवादी व्यवस्था के – सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किया गया। पं. नेहरू का समाजवाद शुद्धसमाजवाद न था। वह एक मिश्रित व्यवस्था का नाम था उसमें पूँजीवादी व्यवस्था और समाजवादी व्यवस्था का अच्छा समन्वय किया गया था। नेहरू के अनुसार मिश्रित अर्थव्यवस्था समय की मांग और पुकार थी तथा इस व्यवस्था में व्यक्तिगत उद्योग भी राष्ट्रीय विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते थे।” इस प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था दो क्षेत्रों में बँट गयी (1) सार्वजनिक क्षेत्र तथा (2) व्यक्तिगत क्षेत्र । सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसे उद्योग थे जिनका राष्ट्रीयकरण कर सरकार का स्वामित्व प्राप्त कराना था और सरकार द्वारा ही उनका पूर्ण नियन्त्रण और संचालन होता था। दूसरे क्षेत्र अर्थात व्यक्तिगत क्षेत्र में ऐसे उद्योग थे, जो व्यक्तिगत रूप से पूँजीपतियों के हाथ में थे। प्रतिरक्षा सम्बधी उद्योग का राष्ट्रीयकरण हुआ। नये कारखानों की स्थापना का अधिकार राज्य को दिया गया। शेष कारखाने पूर्ववत चलते रहे। सीमित आर्थिक साधनों के कारण पं. नेहरू ने सामुदायिक विकास योजनाओं को देश की पंचायत में एक गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया। नेहरू जी का कथन था कि “सामुदायिक योजनाओं का उद्देश्य पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्रों का समुचित विकास व बहुमुखी विकास करना है। शहरों अथवा नगरों का विकास तो बुनियादी और भारी उद्योगों द्वारा ही होगा, किन्तु गाँवों की समस्या कुटीर उद्योगों से ही सुलझेगी।”

विकास योजनाओं को देश की पंचवर्षीय योजनाओं में एक गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया। नेहरू जी का कथन था कि “सामुदायिक योजनाओं का उद्देश्य पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्रों का समुचित विकास व बहुमुखी विकास करना है। शहरों अथवा नगरों का विकास तो बुनियादी और भारी उद्योगों द्वारा ही होगा, किन्तु गाँवों की समस्या शेष रहेगी।”

नेहरू जी सामुदायिक विकास योजना को भारत के ग्रामीणों के विकास के लिए अपरिहार्य समझते थे। इस योजना के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था कि “जो कार्य हमने आरम्भ किया है, वह क्रांति को जन्म देने वाला है। यह क्रांति किसी विप्लव पर असंख्य शीर्ष टूटने पर आधारित न होकर गरीबी को समाप्त करने के लिए सतत् प्रयासों पर आधारित है।

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