भारत सेवक समाज की स्थापना के कारण एंव उद्देश्य
भारत सेवक समाज एक अनुपम देन- गोखले के राजनीतिक विचारों को भली- भाँति समझने के लिए यह परमावश्यक है कि भारत सेवक संघ के उद्देश्यों को पूरी तरह समझा जाए। भारत सेवक संघ की स्थापना गोखले द्वारा 12 जून, 1905 को की गई। इस संघ की स्थापना के कारणों और उद्देश्यों पर इसकी प्रस्तावना से काफी प्रकाश पड़ता है। इसलिए यद्यपि यह प्रस्तावना लम्बी है तथापि ज्यों की त्यों नीचे दी जा रही है।
भारत सेवक समाज की स्थापना के कारण- प्रस्तावना में लिखा है कि “गत कुछ समय से गम्भीर और विचारशील लोगों के मन में यह विश्वास घर करता जा रहा है कि भारत में राष्ट्रनिर्माण के कार्य में अब एक ऐसी स्थिति आ गई है कि जब और अधिक प्रगति के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित ऐसी संस्था जरूरी हो गई है जो सच्ची मिशनरी भावना के साथ इस कार्य में लग जाये। जो कार्य अब तक हुआ है, वह सचमुच सर्वोच्च मूल्य का है। हम निरन्तर और अधिकाधिक इस बात को अनुभव कर रहे हैं कि हम सबसे पहले भारतीय हैं और हिन्दू- मुसलमान, पारसी तथा ईसाई बाद में हैं। विश्व के राष्ट्रों के बीच अपना स्थान ग्रहण करने के लिए आगे बढ़ते हुए तथा अपने महान अतीत के योग्य एक संगठित एवं पुनर्निर्मित भारत का विचार अब थोड़े से कल्पनाशील व्यक्तियों के मन का एक निरर्थक स्वप्न मात्र ही नहीं रह गया है, बल्कि राष्ट्र के मस्तिष्क, अर्थात् देश के शिक्षित वर्गों का एक निश्चित रूप से स्वीकार किया गया धर्म है। शिक्षा तथा स्थानीय स्वायत्त शासन के क्षेत्रों में पहले ही एक श्रेयस्कर कार्य का प्रारम्भ हो चुका है। और राष्ट्र के सभी वर्ग धीरे-धीरे किन्तु निरन्तर उदारवादी विचारों के प्रवाह में आ रहे हैं। सार्वजनिक जीवन के मार्ग को दिन-प्रतिदिन अधिक व्यापक मान्यता मिल रही हैं तथा अपनी जन्मभूमि के प्रति जो हमारा अनुराग है, वह हृदय की एक शक्तिशाली तथा गहन भावना बनती जा रही है। … अब तक के परिणाम निःसन्देह बहुत आनन्ददायक रहे हैं, किन्तु उनका अर्थ केवल इतना ही है कि जंगल साफ किया जा चुका है और आधारशिला आरोपित कर दी गई है। इस आधार पर भवन निर्माण करने का महान कार्य आरम्भ होना अभी बाकी है तथा स्थिति कार्यकर्ताओं से मांग करती है कि वे कार्य के आकार के अनुपात में निष्ठा और बलिदान करने को तत्पर रहें। “
भारत सेवक समाज के उद्देश्य- भारत सेवक संघ की प्रस्तावना में आगे कहा गया है, “भारत सेवक संघ की स्थापना स्थिति की इन्हीं आवश्यकताओं को कुछ सीमा तक पूरा करने के लिए की गई है। इसके सदस्य स्पष्टतः यह स्वीकार करते हैं कि ब्रिटिश सम्पर्क एक रहस्यमय ईश्वरीय इच्छा का परिणाम है और उसमें भारत की भलाई है साम्राज्य के भीतर अपने देश के लिए स्वशासन की प्राप्ति और अपने देशवासियों के लिए उच्चतम जीवन की उपलब्धि इस संघ के सदस्यों का लक्ष्य है। वे इस बात से परिचित हैं कि यह लक्ष्य वर्षों तक गम्भीर धैर्यपूर्वक प्रयास तथा यथेष्ट लिन के बिना नहीं हो सकता देश मे आज के स्तर की अपेक्षां कहीं अधिक उत्कृष्ट चरित्र और अधिक क्षमता के निर्माण की दिशा में बहुत कुछ कार्य करना है और इस दिशा में प्रगति धीरे-धीरे हो है। इसके अतिरिक्त वह मार्ग बड़ा कंटकाकीर्ण (काँटों वाला) है, हमारे समक्ष पीछे पड़ने के प्रलोभन हमेशा आते रहेंगे। इस महान कार्य में लगने वालों के विश्वास की बराबर निराशाओं द्वारा परीक्षा होगी।”
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