समकालीन समाज में गांधीजी की प्रासंगिकता का परीक्षण

समकालीन समाज में गांधीजी की प्रासंगिकता का परीक्षण
समकालीन समाज में गांधीजी की प्रासंगिकता का परीक्षण
समकालीन समाज में गांधीजी की प्रासंगिकता का परीक्षण कीजिए।

गांधीजी के विचारों को ‘गांधीजी’ कहा गया है। गांधीजी के विचार किसी ग्रन्थ में संकलित होकर उनके भारतीय विचारकों में गांधी और उनकी विचार धारा का विशेष महत्व है। गांधी जी की प्रासांगिकता का जहाँ तक प्रश्न है तो उनकी प्रासंगिकता उनके विचारों एवं वर्तमान में उसके औचित्य से ज्ञात होती है। उल्लेखनीय है कि गांधीजी के विचार लेखों भाषणों और पुस्तकों में मिलते हैं। वह एक विचारक न होकर आध्यात्मिक सन्त थे, जिनके सिद्धान्त तथा व्यवहार में कोई अन्तर नहीं था। समकालीन समाज में उनकी प्रासंगकिता को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

1. गांधी जी का विचार विशुद्ध भारतीय विचारधारा पर आधारित है, अतः उसमें भारतीय घटनाओं, समस्याओं की व्याख्या एवं उनका मूल्यांकन विस्तार पूर्वक समाहित है।

2. गांधी जी ने सत्याग्रह को एक अमोध अस्त्र साबित किया है। यह एक ऐसा अस्त्र है. जो कभी भी किसी को आघात या क्षति नहीं पहुँचाता। सत्याग्रह में धर्म, सत्प्रदाय, जाति के बीच भेद-भावना नहीं होती।

3. अधिकांश भारतवासियों का जीवन आज भी धर्म पर आधारित है। अतः उसकी सत्यता एवं वास्तविकता को धर्म से अलग करके समझना उचित नहीं है। गांधी जी का धर्म संपूर्ण मानव-जाति से सम्बन्धित है, किसी विशेष सम्प्रदाय से नहीं। गांधी जी ने अपना जीवन इसी धर्म की बलिवेदी पर न्यौछावर कर दिया।

4. गांधी जी के जीवन की बुनियाद सत्य एवं अहिंसा रही है अतः उन्होंने अपने चिन्तन, मनन, विचार और कार्य प्राणाली सभी में सत्य एवं अहिंसा को प्रधानता दी। उनके लिए सत्य ही ईश्वर था, सत्य ही ज्योतिर्मय था, असत्य अन्धकार था। वह मानते थे कि कोई भी कार्य अपवित्र एवं अशुद्ध साधनों से सिद्ध नहीं हो सकता। जैसे साधन होंगे, वैसा ही साध्य होगा। हिंसा कमजोरो का अस्त्र है, शूरवीरों का नहीं।

5. भारतीय समाज में व्याप्त अस्पृश्यता, वर्ण व्यवस्था, स्त्रियों की शिक्षा और उनकी उन्नति, साम्प्रदायिक एकता, बुनियादी शिक्षा, दहेज, वेश्यावृत्ति, देवदासी जैसी कुरीतियों का अन्त आज भी गांधी जी की प्रासंगिकता को स्पष्ट करते हैं। अन्त में उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया रचनात्मक कार्यक्रम अपनाकर निर्धनता, बेकारी और अस्पृश्ता को कम किया जा सकता है। गांधी जी के विचार कोरे राजनीतिक सिद्धान्त मात्र नहीं है, एक सन्देश भी है और श्रेष्ठ जीवन-दर्शन भी है। उन्होंने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और सामाजिक न्याय का पाठ पढ़ाकर भारतीयों की पुरातन बुद्धिमत्ता की सार्थकता को सिद्ध किया है। इस प्रकार उपरोक्त के आधार पर हम पाते हैं कि वर्तमान में भी गाँधीजी के दर्शन या विचार सामाजिक कुरीतियों एवं अन्य समस्याओं के समाधान में सहायक है वह चाहे भारत की समस्या हो या विश्व के अन्य राष्ट्र की। अतः हम कह सकते हैं कि गांधी की प्रासंगिकता वर्तमान में भी वैसी ही है जैसा कि गांधी जी के समय में थी।

6. गांधी जी की प्रासंगिकता आर्थिक विषमता को दूर करने में भी झलकती है। उनका ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त अमीरी-गरीबी की खाई को पाटता है। वह पूँजीपतियों को नष्ट करने के समर्थक नहीं हैं। वह उनका हृदय परिवर्तन करना चाहते थे, ताकि समाज एवं देश की अनेक समस्याओं का स्वतः समाधान हो सके।

7. गांधी जी ग्रामीण पुनर्निर्माण पर बहुत बल देते थे। उनका विश्वास था कि स्वतंत्रता का आरम्भ नीचे से होना चाहिए। प्रत्येक गाँव को एका गणराज्य या पंचायत राज्य होना चाहिए. उसे पर्याप्त शक्ति एवं सामर्थ्य देनी चाहिए।

8. गांधी जी शारीरिक श्रम पर अत्यधिक बल देते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक स्वस्थ और सक्षम व्यक्ति को अपनी आजीविका हेतु अनिवार्यतः शारीरिक श्रम करना ही चाहिए। यह दैनिक जीवन का यज्ञ है, जो श्रम नहीं करता, उसे भोजन करने का अधिकार नहीं है। श्रम से ही व्यक्ति और समाज की उन्नति हो सकती है।

इस प्रकार उपरोक्त के आधार पर हम पाते हैं कि वर्तमान में भी गाँधीजी के दर्शन एवं विचार सामाजिक कुरीतियों एवं अन्य समस्याओं के छल में सहायक है वह चाहे भारत की समस्या हो या विश्व के अन्य राष्ट्र की। अतः हम कह सकते हैं कि गाँधीजी को प्रासंगिकता वर्तमान में भी वैसी ही है जैसा कि गाँधीजी के समय में थी।

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