क्या आप सहमत हैं कि गांधी का राजनैतिक दर्शन कुछ नहीं, केवल मानवता का दर्शन है?
गांधीजी के राजनीतिक दर्शन के विषय में कई विद्वानों ने अनेक मतों का प्रतिपादन किया, परन्तु आज भी यह विषय अत्यधिक विवादास्पद है कि गांधी जी का दर्शन एक राजनीतिक दर्शन था या मानवता का दर्शन । परन्तु इस विवादास्पद विषय पर जाने के लिए हमें गांधी जी के सामाजिक विचारों पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा। गांधी जी के अनुसार, समाजवादी स्पष्टतः हिंसा एवं क्रान्ति तथा इससे सम्बद्ध बातों में अगाध विश्वास करते हैं, किन्तु उनके लिए तो अहिंसा ही सब कुछ है। गांधी जी के अनुसार, समाजवाद का अर्थ सर्वोदय अर्थात् सबका उदय है, सब का हित है, सबका कल्याण है। मैं गूंगे, बहरे ओर नेत्रहीनों को नष्ट कर उठना नहीं पसन्द करता । मेरे समाजवाद में ऐसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं है। समाजवादियों की नजर में भौतिक समृद्धि एवं उन्नति ही एकमेव प्रमुख लक्ष्य है, किन्तु मैं तो मानव-व्यक्तित्व के बहुमुखी एवं समग्र विकास के लिए स्वतंत्रता पाने का समर्थन करता है।
वह पाश्चात्य समाजवाद के विरोधी थे, क्योंकि उनका विचार था कि समाजवाद तथा साम्यवाद जैसे पश्चिमी सिद्धान्त, जिस वैचारिक धरातल पर टिके हुए हैं, वे हमारे परम्परागत एवं तत्सम्बन्धित विचारों से मूलतः सर्वथा अलग प्रकार के हैं पश्चिमी मान्यतानुसार, मानव अपने 1 स्वभाव से ही स्वार्थी है किन्तु मैं इसे नहीं स्वीकार करता हूं। मेरी मान्यता यह है कि मानव तथा पशु में मौलिक भेद यह है कि मानव अपनी आन्तिरिक आत्मा की पुकार का उत्तर दे सकता है, उन विचारों से ऊपर भी उठ सकता है, जो कि उसमें तथा पशुओं में सामान्य रूप से पाए जाते हैं। अत: हमारे समाजवाद की रचना अहिंसा के आधार पर, मजदूरों एवं पूँजीपतियों, किसानों तथा जमींदारों के सहयोग पर आधारित होनी चाहिए। उनका कहना था कि वास्तविक समाजवाद तो हमें हमारे उन पूर्वजों ने दिया है, जिन्होंने यह सिखाया कि ‘सबै भूमि गोपल की है।’ इससे प्रतीत होता है कि गांधी जी समाजवादी नहीं थे। वह स्वेच्छापूर्वक स्वार्थ के त्याग में विश्वास करते थे, समाजवादी फूट और घृणा द्वारा मानवता का प्रचार करना चाहता है, किन्तु गांधी जी सेवा और त्याग द्वारा मानवता के प्रचार पर बल देते हैं।
इस पर भी उनके ‘सर्वोदय’ सम्बन्धी कुछ विचार समाजवाद से प्रभावित लगते हैं। उन्होंने स्वयं कहा कि मेरे समाजवाद का तात्पर्य सर्वोदय है। भारतीय समाज की रचना अहिंसा के आधार पर, सभी लोगों के सहयोग पर आधारित होनी चाहिए। वह मानते थे कि सबके भले में अपना भी भला है। श्रमिकों, मजदूरों और किसानों का जीवन ही सच्चा जीवन है। सभी के काम का पारिश्रमिक एक समान होना चाहिए। गांधी जी के समाजवादी विचारों का मूल स्रोत भारतीय संस्कृति में निहित है, जो अहिंसा, आर्थिक एवं राजनीतिक विक्रेन्दीकरण एवं ग्राम स्वावलम्बन पर आधारित है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गांधी जी ने राजनीतिक होते हुए भी समाज के उद्धार हेतु अथक प्रयास किया। अतः यह कहा जा सकता है कि गांधी जी की राजनीतिक दर्शन ज्यादा कुछ न होते हुए भी मानवता का दर्शन कराता है।
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