नेहरू जी के मानवतावाद की विवेचना कीजिये।
पं. नेहरू लोकतंत्र, समाजवाद तथा मनवतावाद का सम्मिश्रण करना चाहते थे। वे हिंसा से घृणा एवं अहिंसा के प्रति श्रद्धा रखते थे। वे ऐसे आदर्शवादी थे जो नैतिक मूल्यों पर बहुत बल देते थे। वे पीड़ित, शोषित एवं पददलित वर्ग के हितैषी थे। गन्दी बस्तियों को देखकर उन्हें आश्चर्य होता था कि इनमें मानव कैसे कीड़े-मकोड़े के रूप में रहता है। डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था कि “मानव के रूप में श्री नेहरू के चिन्तन की सुकुमारता, भावना की अद्वितीय कोमलता और मानव एवं उदार प्रवृत्तियों का अद्भुद सम्मिश्रण था। दुर्बल और हताश व्यक्तियों के प्रति उनके हृदय में गहनतम सहानुभूति उमड़ती थी।” पं. नेहरू जीवनपर्यन्त उच्चतर आदर्श के लिए संघर्ष करते रहे। जनता के सामने उन्होंने एक उच्चादर्श प्रस्तुत किया। उनका संदेश था कि “मनुष्य को व्यावहारिक और अनुभव प्रधान नैतिक और सामाजिक, परोपकारी और मानवतावादी होना चाहिए।” पं. नेहरू का यह विश्वास था कि वर्तमान समय में सर्वोत्तम यदि कोई हो सकता है तो वह मानवतावाद है। इस विषय में महात्मा गांधी और ठाकुर रवीन्द्र से उन्हें बड़ी प्रेरणा मिली थी। मृत्यु शैय्या पर पड़े टैगोर के निम्नलिखित शब्द उन पर गहरा प्रभाव छोड़ गये थे। वे शब्द हैं, “जब मैं चारों ओर देखते हूँ तो मुझे एक गौरवपूर्ण सत्यता के गिरते हुए ध्वंसावशेष दिखाई पड़ते हैं मानो वे निरर्थकता का एक विशाल ढेर हैं, फिर भी मैं मनुष्य में विश्वास खो देने का घोर पाप नहीं करूँगा बल्कि मैं तो यही आशा करता हूँ कि जब प्रलय गुजर जायेगी और सेवा तथा बलिदान की भावन से वातावरण निर्मल हो जाएगा, तो इतिहास में एक नया अध्याय खुलेगा। नहीं… मनुष्य में विश्वास नहीं हो सकता है। ईश्वर की सत्ता से हम इन्कार कर सकते हैं, मनुष्य की सत्ता से इंकार कर दें और इस प्रकार प्रत्येक वस्तु को निरर्थक बना दें, तो हमारे लिये आशा ही क्या रह जायेगी ?”
जवाहरलाल नेहरू मानव के गौरव में विश्वास रखते थे, इसलिए अनुकूल परिस्थितियों के बाद भी वे एक तानाशाह बन जाने के प्रलोभन से अपने को बचा सके। वे पक्के उदारवादी मानवतावाद के मूल्यों के प्रति आस्था रखते थे। वे लोकतन्त्रीय समाजवाद चाहते थे। उन्हें साम्यवाद में हिंसक एवं अनैतिक साधनों के प्रति कभी आकर्षण उत्पन्न न हुआ। वे साम्यवादी तानाशाही से भी चिढ़ते थे। मानव की स्वतंत्रता, समानता, एवं भ्रातृत्व भाव को वह किसी कीमत पर छोड़ना पसन्द नहीं करते थे। उन्हें अछूतों से बड़ी सहानुभूति थी। पीड़ित एवं तड़पती मानवता तथा तिरस्कृत अछूतों से उनका हृदय दु:खी हो जाता था। वे कल्पनावादी न थे। उन्होंने अपने मानवतावाद का परिचय अपने सेवावृती जीवन के द्वारा दिया। डा. राधाकृष्णन् ने उनके विषय में कहा था कि, “उन्होंने जनता के जीवन में ही अपना जीवन खपा दिया था और उनके जीवन को संघर्ष समर्थ तथा सम्पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया था। वह महान आत्मा थी और इसकी महानता इसी बात को समझने में है कि व्यक्ति केवल अपने लिये ही पैदा नहीं होता, बल्कि वे अपने पड़ोसी, अपनी जनता के लिए भी होता है। वे केवल देश के महान मुक्तिदाताओं में ही नहीं थे, बल्कि महान निर्माताओं में भी थे। उन्होंने अपने जीवन में हम लोगों की राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए प्रयत्न नहीं किया, उन्होंने कभी अपने आराम का ध्यान नहीं किया तथा अपनी सम्पत्ति एवं धन का भी कभी ख्याल नहीं किया।
पं. नेहरू मानवता के प्रतीक थे। आजीवन उन्हें मानवता से गहरा लगाव रहा। वे किसी विशेष धर्म में विश्वास नहीं करते थे पर मानवता को वह सबसे बड़ा धर्म बताते थे। वे भारत के प्रधानमंत्री थे पर मानवों का कल्याण सदैव ध्यान में रहता था। वे जानते थे कि “मानव अपने में अपूर्ण है। उसे आत्मा और स्वतन्त्रता के जीवन में पदार्पण करना जिसका अभी निर्माण हो रहा है तथा उसे अपना और निर्माण करना है। उनके लिए मनुष्य जीवन आध्यात्मिक है जो निर्वाध अपराजेय, सक्रिय, उदबुद्ध और दैवी शक्ति से परिचालित है।”
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