भारतीय पुनर्जागरण के उत्तरदायी तत्व के रुप मे आर्थिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक पुनर्जागरण

भारतीय पुनर्जागरण के उत्तरदायी तत्व के रुप मे आर्थिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक पुनर्जागरण
भारतीय पुनर्जागरण के उत्तरदायी तत्व के रुप मे आर्थिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक पुनर्जागरण

भारतीय पुनर्जागरण के उत्तरदायी तत्व के रुप मे आर्थिक, राजनीतिक एवं साहित्यिक पुनर्जागरण पर पकाश डालिए।

आर्थिक पुनर्जागरण

प्राचीन काल में भारत का व्यापार उन्नति के शिखर पर था। उसे ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। मध्यकाल तक विदेशी आक्रमणकारियों और मुस्लिम शासकों ने इसे बुरी तरह लूटा और यहाँ की अपार धन सम्पदा अपने देशों को ले गये। फिर भी भारत की आर्थिक सम्पन्नता पूर्णतया नष्ट न हो सकी। यहाँ के उद्योग धन्धे तथा व्यापार धन के अभाव की पूर्ति करते रहे। 16वीं और 17वीं शताब्दी में अंग्रेज, फ्रेंच तथा डच कम्पनियाँ भारत में व्यापार के उद्देश्य से आईं। यह यूरोप में पूँजीवाद के प्रारम्भ का युग था। इंग्लैण्ड की ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने लगी। 17वीं शताब्दी के अन्त तक मुगल सम्राट औरंगजेब का कठोर शासन रहा अतः अंग्रेजों की दाल न गल सकी। औरंगजेब की मृत्यु तक ये कम्पनियाँ देश में शान्तिपूर्वक व्यापार करती रहीं किन्तु बाद में मुगलों की शक्ति छिन्न-भिन्न हो जाने के कारण देश में राजनीतिक एकता तथा शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता का अभाव हो गया फलतः अंग्रेजों ने देश की राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप करना प्रारम्भ कर दिया।

बंगाल, मद्रास (चेन्नई) तथा कर्नाटक में अंग्रेजों ने अपना प्रभाव स्थापित करने में सफलता प्राप्त की और वे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना करने का स्वप्न देखने लगे। उन्होंने अपने व्यापार की वृद्धि के लिए भारतीय उद्योग-धन्धों को नष्ट करना प्रारम्भ कर दिया। बंगाल में मुर्शिदाबाद में उन्होंने भारतीय कारीगरों के साथ अनेक अमानुषिक व्यवहार किये और उन्हें अपंग बनाकर देश के कला कौशल को नष्ट कर दिया। अंग्रेजों ने यहाँ अपने उद्योग धन्धों की स्थापना की। इसके बाद बंगाल में विदेशी माल भारी मात्रा में बिकने लगा और कच्चा माल इंग्लैण्ड जाने लगा। जमींदारी प्रथा ने कृषि की दशा को अत्यधिक शोचनीय बना दिया फलतः देश में निर्धनता दृष्टिगोचर होने लगी।

उन्नीसवीं शताब्दी के एक दूसरे दशक तक अंग्रेजों ने संपूर्ण देश पर अपना आधिपत्य स्थापित कर दिया। लार्ड डलहौजी ने भारत में रेल, तार, सड़कों आदि का निर्माण कराया। इससे देश में आर्थिक पुनर्जागरण का सूत्रपात हुआ। पाश्चात्य सभ्यता में रंगे नवयुवकों ने गाँवों को छोड़कर नगरों में रहना प्रारम्भ कर दिया। अंग्रेज सरकार ने नगरों की ओर विशेष ध्यान देना शुरू किया। नगरों में अच्छे रहन-सहन तथा शिक्षा की व्यवस्था की गई। नगरों में पाश्चात्य ढंग के कारखाने स्थापित होने लगे। इस प्रकार नगरों की दिन-प्रतिदिन उन्नति होने लगी। मुम्बई, कोलकाता और मद्रास (चेन्नई) देश के प्रमुख औद्योगिक, व्यावसायिक एवं आधुनिक नगर बन गये। कई ग्रामों को नगरों में परिवर्तित किया जाने लगा।

इस नवीन आर्थिक पुनर्जागरण के फलस्वरूप समाज में एक नवीन आर्थिक वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ। इससे पूर्व देश के जमींदार तथा जागीरदार ही आर्थिक वर्ग में प्रमुख थे और देश में मुगलकालीन आर्थिक व्यवस्था स्थापित थी। देश में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना हो जाने से व्यापार और उद्योग के नवीन पूँजीवादी आधार पर एक नये उच्च वर्ग का प्रादुर्भाव हुआ जो कि कर अथवा लगान के आधार पर नहीं वरन ब्याज तथा लाभ के आधार पर उन्नति कर रहा था। नवीन वर्ग ने मुख्य रूप से जहाँ सामाजिक व राष्ट्रीय आन्दोलनों को आर्थिक सहायता देना आरंभ किया वहाँ ब्रह्म समाज, आर्य समाज एवं राष्ट्रीय कांग्रेस को भी आर्थिक सहायता देना जारी रखा। 20वीं शताब्दी में भारत में औद्योगिक पूँजीवाद का विकास हुआ। पाश्चात्य ढंग के बैंकों, उद्योगों तथा व्यापार की भारत में स्थापना हुई। नगरों में श्रमिकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई और समाज में उच्च, मध्यम तथा निम्न वर्ग का जन्म हुआ। इस प्रकार देश में आर्थिक पुनर्जागरण का सूत्रपात हुआ।

राजनीतिक पुनर्जागरण

अंग्रेजों ने इस देश में अंग्रेजी ढंग की शासकीय और प्रबन्धकीय संस्थाओं की स्थापना की। पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित लोग इन संस्थाओं से गहरा सम्पर्क रखने लगे। पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त कर भारतीय नवयुवक ब्रिटिश राजनीतिक संस्थाओं को भली प्रकार समझने लगे। कार्यपालिका सभा, लॉ कमीशन, सुप्रीम कोर्ट, बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल, इण्डिया कौंसिल आदि अनेक संस्थाओं की स्थापना की गई। पाश्चात्य शिक्षा में पारंगत हो भारतीय नवयुवक पाश्चात्य शासन प्रणाली को भी समझने लगे।

भारतीय राजनीतिक विचारों का पुनर्जागरण तथा राष्ट्रवाद का प्रादुर्भाव इन राजनीतिक संस्थाओं की पृष्ठभूमि में हुआ। राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर भारतीयों ने सरकारी नौकरियों को प्राप्त करने की माँग की। सन् 1885 ई. में महारानी विक्टोरिया ने घोषणा कर भारत का शासन अपने हाथ में लिया और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के स्थान पर इंग्लैण्ड की रानी की ओर से भारत की शासन व्यवस्था की जाने लगी। इंग्लैण्ड की सरकार ने कानून के अनुसार समानता ने के राजनीतिक सिद्धान्त, प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अवसर प्रदान करना, धार्मिक सहिष्णुता तथा धार्मिक स्वतंत्रता को राजनीति के सिद्धान्तों के रूप में स्वीकार कर लिया। इस प्रकार देश में राजनीतिक पुनर्जागरण का सूत्रपात हुआ।

लार्ड कर्जन और लार्ड लिटन की भेदभाव नीति के कारण देश में साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिला। इसने देश में अंग्रेजों के विरुद्ध एक घृणा का वातावरण उत्पन्न कर दिया। ब्रिटेन की भांति राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना के लिए भारत में भी माँग उठाई गई। राजा राममोहन राय, दादा भाई नौरोजी, सर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले तथा अन्य भारतीय नेताओं ने इन संस्थाओं के आधार पर राजनीतिक दृष्टिकोण से सोचना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार राष्ट्रीय पुनर्जागरण के साथ-साथ राजनीतिक विचारों का विकास हुआ।

‘साहित्यिक पुनर्जागरण

 देश के विभिन्न क्षेत्रों में हुए पुनर्जागरण का प्रभाव साहित्यिक क्षेत्र में भी हुआ। नवीन शिक्षा, संस्कृति तथा कला के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन होने लगे। साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन आने लगा। विष्णु कृष्ण चिपलूकर, बंकिम चन्द्र तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नवीन साहित्य की रचना की। बंकिम चन्द्र के ‘आनन्द मठ’ और ‘दुर्गेशनन्दनी’ ने राष्ट्रवाद का प्रचार किया। टैगोर की बंगला तथा अंग्रेजी साहित्य की रचनाओं ने भारी ख्याति अर्जित की। उन्हें विश्व का महान कवि तथा श्रेष्ठ नाटककार समझा जाने लगा। तिलक ने मराठी भाषा में गीता रहस्य लिखकर अमर प्रसिद्धि प्राप्त की। उनके मराठी तथा अंग्रेजी पत्रों ने राष्ट्रीयता की भावना का काफी प्रचार किया और भारतीय समाचार-पत्रों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रकार साहित्यिक पुनर्जागरण भी तेजी से प्रारम्भ हो गया।

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