गाँधी जी के सर्वोदयी विचार
सर्वोदय सम्बन्धी विचार- महात्मा गांधी का ध्यान यद्यपि सामाजिक न्याय और सर्वोदय की और अवश्य था, किन्तु उनकी अन्तरात्मा एक व्यक्तिवादी की ही थी। उनके विचारानुसार व्यक्ति एक इकाई होते हुए भी मूलतः आत्मा है। गांधीवादी सर्वोदय के सिद्धान्तानुसार एक आदर्श समाज में न केवल मजदूरों की ही, बल्कि समाज के विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए नागरिकों के भी पारिश्रमिक में समानता होनी चाहिए, ताकि सभी का समान रूप से उदय उत्थान हो सके। समाज एवं समाज के साथ संलग्न समस्याएँ समयानुसार उत्पन्न होती रहती हैं, जिनमें समय के साथ-साथ निखार / उभार आता है, जबकि कुछ पर समयरूपी गर्द / धूल पड़ती जाती है। महात्मा गांधी ने समाज का अवलोकन एक अनोखी दृष्टि से किया। उन्होंने समाज की समस्याओं के हल और निदान हेतु एक सर्वथा नवीन विचार प्रस्तुत किया, जिसको ‘सर्वोदय की अवधरणा’ या ‘सर्वोदय समाज की स्थापना कहा जाना है।
आधुनिक युगको वैज्ञानिक युग कहा जाता है, क्योंकि इस युग में विज्ञान और तकनीकी ही सर्वोच्च शक्ति है, किन्तु सत्ता वैज्ञानिक के हाथों में नहीं है। सत्ता के मूल सूत्र राज्य का अधिकार धन, शस्त्र आदि के हाथ में है। संसार शान्ति चाहता है फिर भी शस्त्र नहीं छोड़ता है। व्यक्ति की सम्पन्नता, समृद्धि और के हाथ में है। संसार शान्ति चाहता है, फिर भी शस्त्र नहीं छोड़ता है। व्यक्ति की सम्पन्नता, समृद्धि और सुशिक्षा के लिए पूँजीवाद, सामाजवाद, साम्यवाद, आदि भिन्न-भिन्न प्रयोग चल रहे हैं। प्रगति विश्व का प्रमुख नारा बन गया है। गांधी जी ने आधुनिक विश्व के संघर्षपूर्ण वातावरण को देखकर एक नवीन समाज रचना की व्यवस्था प्रस्तुत की, जिसमें प्रेम, शान्ति और सत्य के आधार पर व्यक्ति प्रगति की ओर बढ़े, लक्ष्य के अनुरूप साधन जुटाये। सर्वोदय समाज व्यवस्था की ओर मानव मात्र के कल्याण के लिए विकसित की गई। समाज रचना है। राज्य शक्ति, शस्त्र अथवा धन शक्ति मानव मात्र का कल्याण नहीं कर सकती है। मानवीय शक्ति ही इसके लिए आवश्यक है। गांधी जी के विचार से मानवीय शक्ति की प्राप्ति के लिए मानवीय मूल्यों की स्थापना करना भी आवश्यक है।
सामान्य अर्थों में सबका उदय, विकास तथा सबकी प्रगति ही सर्वोदय है। समस्त प्राणियों के प्रति आदर और सहानुभूति ही सर्वोदय का मार्ग है।
गांधी जी ने प्रत्येक काम के लिए समान मूल्य को ही सर्वोदय का आदर्श बनाया है। समन्वय ही सर्वोदय की नीति है, जिस प्रकार से सूर्य का प्रकाश, जल और वायु सबके लिए समान रूप से उपलब्ध है, उसी प्रकार ईश्वर के द्वारा दी गई सभी चीजों पर सबका समान रूप से अधिकार है। सर्वोदय का दर्शन समग्र जीवन के लिए है। ऊँच-नीच, गरीब-अमीर, पूँजीपति और मजदूर, देहाती और शहरी सबको समान सुविधायें मिलें, जो ऊँचा हो वह थोड़ा नीचे खिसके, नीचा थोड़ा ऊपर जाये और इस प्रकार मध्य स्थल पर सबमे साम्यता हो, जो भोजन के अभाव में दुर्बल है, उसे दूध और मक्खन मिले और जिसे अधिक खाने से अजीर्ण हो गया है, उसके लिए कटु औषधि का प्रबन्ध हो, यही सर्वोदय की प्रमुख मान्यता है।
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