गांधी जी के सत्याग्रह सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए ।
सत्याग्रह का सिद्धान्त गांधी जी की राजनीति को विशेष और अपूर्व देन है। स्वयं गांधी जी के शब्दों में, “अपने विरोधियों को दुःखी बनाने के बजाय स्वयं अपने पर दुःख डालकर सत्य की विजय प्राप्त करना ही सत्याग्रह है। सत्याग्रह शक्तिशाली और वीर मनुष्य का शस्त्र है। एक सत्याग्रही अपने प्रतिद्वन्द्वी से आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। वह उसमें ऐसा विश्वास उत्पन्न कर देता है कि वह बिना अपने को नुकसान पहुँचाए उनको नुकसान नहीं पहुँचा सकता है। सत्याग्रह तो सत्य की विजय हेतु किए जाने वाले आध्यात्मिक और नैतिक संघर्ष का नाम है।
सत्याग्रही के गुण- गांधीजी के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सत्याग्रह के सिद्धान्त पर आचरण नहीं कर सकता, सत्याग्रही में कुछ विशेष गुण होने चाहिए। उनके अनुसार सत्याग्रही के लिए यह आवश्यक है कि वह सत्य पर चलने वाला हो (अनुशासन में रहने का अभ्यस्त हो तथा मनसा, वाचा और कर्मणा अहिंसा में विश्वास रखने वाला हो। सत्याग्रही कभी अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छल, कपट, झूठ, हिंसा, इत्यादि का आश्रम नहीं लेता। वह जो कुछ करता है, खुले रूप में करता है और अपनी कमजोरियों व भूलों को लिपाने के बजाय उन्हें खुले रूप में स्वीकार करने के लिए तत्पर रहता है। गांधी जी ने ‘हिन्द स्वराज्य’ में सत्याग्रही के लिए 17 व्रत का पालन आवश्यक बताया है। ये व्रत निम्नलिखित है-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिह शारीरिक श्रम, अस्वाद, निर्भयता, सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना, स्वदेशी तथा अस्पृश्यत निवारण।
सत्याग्रह के विभिन्न रूप
गांधीजी के अनुसार सत्याग्रह के निम्नलिखित रूप है-
(1) असहयोग आन्दोलन – गांधीजी किसी भी शासन द्वारा जनता के सहयोग से हो शोषण और अत्याचार किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यदि जनता शासन के साथ सहयोग करने से इन्कार कर दें. तो शासन के द्वारा कार्य नहीं किया जा सकेगा। सन् 1919-20 में भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए असहयोग आन्दोलन के मार्ग को ही अपनाया गया था।
(2) सविनय अवज्ञा आन्दोलन – सत्याग्रह का असहयोग से अधिक प्रभावपूर्ण सविनयअवज्ञा है। गांधीजी इसे पूर्ण प्रभावदायक और सैनिक विद्रोह का रक्तहीन विकल्प कहते थे। सविनय अवज्ञा का तात्पर्य अहिंसक और विनयपूर्ण तरीके से कानून की अवज्ञा करना है। कानूनों f की यह अवज्ञा हिंसक रूप ग्रहण न कर ले, इसलिए उनका विचार था कि सविनय अवज्ञा का प्रयोग जनसाधारण द्वारा नहीं वरन् कुछ चुने हुए विशेष व्यक्तियों द्वारा किया जाना चाहिए और किन कानूनों का उल्लंघन किया जाय, यह बात सत्याग्रहियों द्वारा नहीं, वरन् नेता द्वारा ही निश्चित की जानी चाहिए। सन् 1931 में नमक आन्दोलन के रूप में महात्माजी द्वारा इसी शस्त्र का प्रयोग किया गया था।
(3) हिजरत या प्रवजन – सत्याग्रह का एक अन्य रूप है, जिसका अर्थ है, स्थाई निवास स्थान का स्वैच्छिक परित्याग। ऐसे व्यक्ति जो अपने पीड़ित अनुभव करते हों, आत्मसम्मान रखते हुए उस स्थान में नहीं रह सकते हो और अपनी रक्षा के लिए हिंसक शक्ति नहीं रखते हों, उनके द्वारा हिजरत का प्रयोग किया जा सकता है। सन् 1918 में बारडोली और सन् 1939 में बिदुलगढ़ और लिम्बडी की जनता को गांधीजी के द्वारा हिजरत का सुझाव दिया गया।
(4) अनशन – यह यत्याग्रह का रूप है जिसका आजकल बड़ा गलत प्रयोग किया जाने लगा है। गांधीजी इसे अत्यधिक उग्र अस्त्र मानते थे और उनका विचार था कि इसे अपनाने में अत्यधिक सावधानी बरती जानी चाहिए। अनशन केवल कुछ विशेष अवसरों पर आत्मशुद्धि या अत्याचारियों के हृदय परिवर्तन के लिए ही किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस अस्त्र का प्रयोग किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, वरन् आध्यात्मिक बल सम्पन्न व्यक्तियों के द्वारा ही किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके सफल प्रयोग के लिए मानसिक शुद्धता, अनुशासन और नैतिक मूल्यों में आस्था की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
(5) हड़ताल – हड़ताल के सम्बन्ध में गांधी जी का विचार समाजवादियों और साम्यवादियों से भिन्न है। गाधीजी वर्ग संघर्ष की धारणा में विश्वास नहीं करते थे और उनके अनुसार हड़ताल आत्मशुद्धि के लिए किए जाने वाल एक स्वैच्छिक प्रयत्न है, जिनका लक्ष्य स्वयं कष्ट सहन करते हुए विरोधी का हृदय परिवर्तन करना है। गांधीजी के अनुसार हड़ताल करने वाले व्यक्तियों की मांगें नितान्त स्पष्ट और उचित होनी चाहिए। गांधी जी के द्वारा न केवल- आन्तरिक क्षेत्र में वरन् विदेशी आक्रमण की स्थिति में भी सत्याग्रह का सुझाव दिया था। हिटलर द्वारा इंग्लैण्ड पर आक्रमण किये जाने पर उन्होंने इंग्लैण्ड को परामर्श दिया था।
सत्याग्रह का मूल्यांकन
गांधीजी के सत्याग्रह का यदि एक ओर कुछ व्यक्तियों के द्वारा बहुत अधिक गुणगान किया जाता है, तो दूसरी ओर अनेक आधारों पर इसकी कटु आलोचना की जाती है। आलोचना के प्रमुख आधार निम्न प्रकार है-
(1) अहिंसक साधनों से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाना अत्याधिक कठिन – साम्यावादी, अराजकतावादी तथा अन्य क्रान्तिकारी विचारधारा वाले व्यक्ति गांधीवादी विचारधारा की आलोचना करते हुए कहते हैं कि सत्याग्रह जैसे अहिंसक साधनों के आधार पर सामाजिक और आर्थिक स्थिति को पूर्णतया बदलने में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। इनका कथन है कि वर्तमान समय में विशेष स्थिति प्राप्त व्यक्ति अपनी यह स्थिति कभी भी स्वेच्छा से नहीं छोड़ेंगे और सामाजिक आर्थिक जीवन की भीषण विभिन्नताओं को समाप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग करना आवश्यक होगा।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में या आक्रमण के प्रतिरोध में सत्याग्रह का प्रयोग सम्भव नहीं – गांधीजी द्वारा विदेशी आक्रमण की स्थिति में भी सत्याग्रह का सुझाव दिया गया था, किन्तु सामान्य अनुभव के आधार पर यही कहा जा सकता है कि ऐसी स्थिति में सत्याग्रह सफल नहीं हो सकता। कोई भी राष्ट्र अहिंसक साधनों पर निर्भर रहकर अपने नागरिकों की स्वतन्त्रता और सुरक्षा खतरे में नहीं डाल सकता। वर्तमान समय में छोटे-बड़े देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एक-दूसरे के विरुद्ध जिस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, उसे देखते हुए तो सत्याग्रह की सफलता बहुत ही अधिक संदिग्ध हो जाती है। आलोचकों के अनुसार हवाई हमले और परमाणु बम के इस युग में आक्रमण के प्रतिरोध हेतु सत्याग्रह की बात हास्यास्पद ही लगती है।
(3) सत्याग्रह का प्रयोग सभी परिस्थितियों में सम्भव नहीं – आलोचकों के अनुसार प्रत्येक स्थिति में, प्रत्येक जगह प्रत्येक प्रकार के लोगों के साथ सत्याग्रह का सफलतापूर्वक प्रयोग नहीं किया जा सकता है। स्वतन्त्र समाजों में, जहाँ विवेक, मानवता के प्रति आदर और न्याय विद्यमान हो, सत्याग्रह का भले ही सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता हो, परन्तु निरंकुश शासकों और बौद्धिक तथा नैतिक दृष्टि से बहुत अधिक पिछड़े हुए लोगों के विरुद्ध सत्याग्रह की सफलता में दमनात्मक बल के आधार पर सत्याग्रह को कुचल दिया गया। विरोधी के अन्त:करण को जाग्रत करने का कार्य निश्चित रूप से अहुत अधिक कठिन है। डॉ. बन्दुरां के शब्दों में, “इस बात का सामान्यीकरण करना कि सत्यागह द्वारा कहीं भी और किसी भी प्रकार के लोग अन्यायी परिवर्तन कर सकता है, आत्मनाशक है।” का हृदय
(4) सत्याग्रह, अहिंसा की धारणा के अनुकूल नहीं- आलोचक एक आदर्श के रूप में सत्याग्रह की आलोचना करते हुए कहते हैं कि सत्याग्रह का सिद्धान्त अहिंसा की धारणा के अनुकूल नहीं है। सत्याग्रह का तात्पर्य न केवल हिंसा का निषेध, वरन् विरोधी के प्रति किसी प्रकार की दुर्भावना का भी अभाव है। अहिंसा का आशय है कि “मनसा, वाचा, कर्मणा किसी भी रूप में हिंसा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए और विरोधी के पक्ष को भी दुःख नहीं पहुँचाया जाना चाहिए।” आलोचकों के अनुसार सत्याग्रह से उन व्यक्तियों को निश्चित रूप से मानसिक और अनेक बार शारीरिक कष्ट भी पहुँचाया है जिनके विरुद्ध इनका व्यवहार किया जाता है। अतः आर्थर मुर इसे ‘मानसिक हिंसा’ (Mental Violence) कहते हैं। आलोचकों द्वारा सत्याग्रह के एक रूप’ उपवास’ को आतंकवाद’ (Terrorisin) और राजनीतिक दबाव (Political black- mail) की संज्ञा दी गई है।
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